५७ पेशवा को फांसने के प्रयत्न श्रामदनी का इलाका अलग कर दूंगा । वेल्सली की इच्छा अब १६ पाने पूरी हो गई। बाजीराव का पत्र पाते ही उसने उस तजवीज पर अपने दस्तखत कर दिए । इतने ही में होलकर की सेना पूना तक पहुँच गई। २५ अक्तूबर सन् १८०२ को पूना में एक जबरदस्त संग्राम हुआ। _ मालूम होता है कि दौलतराव स्वयं इस संग्राम में न पहुँच सका, किन्तु पूना से चलते समय वह पाँच पलटन पैदल और दस हजार सवार अपनी सेना के पूना में छोड़ गया था। होलकर की सेना एक ओर और पेशवा और सौंधिया की सेनाएँ दूसरी ओर । सींधिया की सेनाएँ अभ्यस्त और शिक्षित थीं। उनके मुकाबले में झेलकर की सेनाएँ अनभ्यस्त थीं। एक बार मालूम होता था कि विजय पेशवा की ओर रहेगी। किन्तु ऐन मौके पर सींधिया की सेना का यूरोपियन सेनापति कमान फाइलॉस निस्सन्देह वेल्सली के इशारे पर अपने मालिक के साथ दगा करके होलकर से मिल गया और सौंधिया और पेशवा की संयुक्त सेनाओं को हार खानी पड़ी। अदूरदर्शी बाजीराव को अन्त समय तक श्राशा थी कि अंगरेजी . सेना, जिसे अपने खर्च पर अपने राज में होलकर भोर पेशवा रखना तक वह स्वीकार कर चुका था और जो में मेल की माशा ___ इस समय पूना पहुँच चुकी थी, विद्रोही होलकर के विरुद्ध मेरी मदद करेगी। किन्तु अंगरेज होलकर ही की मदद करते रहे और होलकर और बाजीराव दोनों को अपने हाथों में
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पेशवा को फांसने के प्रयत्न