पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५७१
पेशवा को फांसने के प्रयत्न

पेशवा को फांसने के प्रयत्न ५७१. हुआ दिखाई न देगा तब तक बाजीराव इससे अधिक के लिए राज़ी न होगा।"* इतिहास लेखक मिल ने अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में दिखाया है कि किस प्रकार पेशवा की भलाई दिखा कर अंगरेज़ इस समय उसकी स्वाधीनता पूरी तरह हर लेने के प्रयत्न कर रहे थे और यही प्रयत्न अन्य मराठा राज्यों में भी जारी थे, अर्थात् अन्य मराठा नरेशों को भी इसी तरह की सबसीडीयरी सन्धियों में फाँसने के प्रयत्न किए जा रहे थे। याजीराव के वेल्सली की पूरी बात न मानने का कारण स्पष्ट था। निजाम की मिसाल उसकी आँखों के सामने थी। वह जानता था कि निज़ाम को अंगरेज़ों की दोस्ती के मूल्य में सन् १७६८ में अपने राज का एक भाग कम्पनी को दे देना पड़ा था। सन् १८०० में सन् १७६ की सन्धि को तोड़कर निज़ाम का और अधिक, और पहले से कहीं बड़ा इलाका उससे ले लिया गया। टीपू के साथ दोनों युद्धों में अर्थात् सन् १७६२ में और सन् १७६8 में निज़ाम ने धन और सेना दोनों तरह से अंगरेजों को मदद दी। विजित इलाके में से निज़ाम को एक हिस्सा दिया गया। किन्तु दोस्तो के बदले में फिर वह तमाम इलाका निज़ाम से छीन लिया गया। नतीजा यह हुआ कि सन् १७६० में निज़ाम के पास जितना इलाका था, सन् १८०० में उससे कहीं कम रह गया। इसके अतिरिक्त निज़ाम की स्वाधीनता का इस अरसे में अन्त हो गया और

  • "I apprehend, that nothing short of imminent and certain destruction

will induce him (the Peshwa) to make concession . . . ete "-Colonel Palmer's letter to Governor General.