पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१५३

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पेशवा को फांसने के प्रयत्न

पेशवा को फाँसने के प्रयत्न ५६५ नीतिज्ञ था, जो अंगरेजों की चालों को थोडा बहुत समझता था। निस्सन्देह उसने अपने जीवन भर मराठा मण्डल के बल को बनाए रखने और भारत की स्वाधीनता की रक्षा करने के अनेक प्रयत्न किए । किन्तु उसके रास्ते में कई रुकावटें थीं । एक तो वह स्वयं न पेशवा था और न सेनापति । दूसरे मराठा मण्डल के अन्दर आए दिन के परस्पर झगड़ों और अंगरेज़ रेजिडेण्टों की साज़िशो ने उसे कामयाब न होने दिया। नाना की मृत्यु के साथ साथ मराठा मण्डल के पुनरुज्जीवन की रही सही पाशा समाप्त हो गई और अंगरेज़ों का मार्ग भारत के अन्दर कहीं अधिक सरल हो गया। ऊपर लिखा जा चुका है कि पेशवा बाजीराव स्वयं निर्बल और अदूरदर्शी था। जब तक दौलतराव सींधिया बाजीराव को फाँसने की चेष्टा और नाना फड़नवीस जैसे प्रौढ़ नीतिज्ञों का पूना के दरबार में प्रभाव रहा तब तक अंगरेज बाजीराव को अपने जाल में न फंसा सके। बाजीराव को नाना और दौलतराव सींधिया से लड़ाने के भी अंगरेजों ने अनेक प्रयत्न किए । अब, जब कि नाना मर चुका था और सींधिया उत्तर में था, बाजीराव को फांसने की वेल्सली ने फिर चेष्टा की। किन्तु दौलतराव सोंधिया की अनुपस्थिति में भी दौलतराव का प्रभाव पूना के अन्दर बहुत काफ़ी था । २० अगस्त सन् १८०० को करनल वेल्सली ने मेजर मनरो (सर टॉमस मनरो) के नाम एक पत्र में लिखा कि-"पूना में सींधिया का प्रभाव इतना ज़बरदस्त है कि हमारी चाल नहीं चल सकती।" इसलिए घेल्सली की मुख्यतम