पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४९

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भारत में अंगरेज़ी राज

५६२ भारत में अंगरेजी राज पेशवा के साथ वादा पूरा करने के लिए अब यह शर्त रक्खी गई कि पहले पेशवा निज़ाम की तरह अपनी सारी सेना बरखास्त कर दे और उसकी जगह कम्पनी की सेना अपने खर्च पर अपनी राजधानी के अन्दर रखना स्वीकार कर ले । नाना फड़नवीस अंगरेजों को खब पहचानता था। बीस साल । पहले दिल्ली सम्राट के नाम अपने पत्र में वह कह अंगरेज़ों के निकालने चुका था कि-"इन टोपी वालों का व्यवहार के नाना के अन्तिम प्रयत्न बेईमानी और चालबाज़ी का है।" इन बीस वर्ष के अन्दर उसका यह विश्वास और भी ज़्यादा मज़बूत हो चुका था । किन्तु शायद नाना को भी यह आशा न थी कि वेल्सली इस प्रकार अपने वादे से फिर जायगा। ___ बीस साल पहले नाना ने दिल्ली के मुग़ल सम्राट की छत्र-छाया में भारत के समस्त स्वाधीन नरेशो को इन विदेशियों के विरुद्ध मिला लेने का प्रयत्न किया था, और उस समय के अंगरेज़ गवरनर जनरल को मराठों के साथ नाना की बताई हुई शतों पर सन्धि करनी पड़ी थी। किन्तु इस बीस साल के अन्दर हिन्दोस्तान की हालत और गिर चुकी थी। निज़ाम इस समय पूरी तरह अंगरेजों के हाथों में था। नाना के उस समय के सब जबरदस्त साथी और अंगरेजों के कट्टर शत्रु हैदरअली तथा उसके वीर पुत्र टीपू सुलतान दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। जो विशाल राज्य हैदरअली ने अपने बाहुबल से विजय किया था, वह अब विदेशियों के हाथों में था। फिर भी नाना ने हिम्मत न हारी। उसने कम्पनी के साथ