पेशवा को फांसने के प्रयल पेशवा की मदद लेने से इनकार किया, इससे पांच दिन पहले अर्थात् ३ अप्रैल सन् १७६४ को मद्रास से चल चुका था। वेल्मली ने अपने लम्बे पत्र में पेशवा की सहायता से इनकार करने के दो कारण बताए हैं। एक यह कि पेशवा ने अपनी सेना के लिए आवश्यक खर्च और सामान देने में कुछ देर की । यह एक गलत और व्यर्थ की बात थी। दूसरे यह कि पेशवा ने टीपू सुलतान के वकीलों को पूना में रहने दिया। इस दूसरे एतराज के जवाब में नाना ने पामर को याद दिलाया कि पहले मैसूर युद्ध के समय भी, जिसमें मराठा सेना ने अंगरेजों को ज़बरदस्त और निर्णायक मदद दी थी, टीपू के वकील बराबर पूना में रहते रहे, और हिन्दोस्तान के नरेशों में यह एक साधारण प्रदा थी। बल्कि इस बार वेल्सली के कहने पर पेशवा ने टीपू के वकीलों को पूना से अलग भी कर दिया था। फिर भी वेल्सली को विश्वास न हो सका और न हो सकता था । ग्रॉण्ट डफ़ का यह कहना भी कि सींधिया और पेशवा ने मिल कर कोई ऐसी बात की हो, जिसका जागरूक नाना को पता न हो, बुद्धि सङ्गत नहीं है। इसके अतिरिक्त वेल्सली यह भी जानता था कि यदि वह मराठा सेना को बुला लेता और वह सेना टोपू के विरुद्ध अगरेजों का साथ दे जाती तो टोपू से जो इलाका लिया जाता उसका एक भाग मराठों को देना पड़ता, जिससे मराठों का बल और बढ़ जाता। वेल्सलो इसे किसी तरह सहन न कर सकता था। इसके विपरीत वह मराठों के सर्वनाश की तदबीर सोच रहा था। सीधिया की सेना पूना से हट चुकी थी, टीपू को
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पेशवा को फांसने के प्रयत्न