पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५५७
पेशवा को फांसने के प्रयत्न

पेशवा को फाँसने के प्रयत्न ५५७ देने का वादा कर लिया। फौरन परशुराम भाऊ के अधीन एक सेना टीपू के विरुद्ध अंगरेज़ों की मदद के लिए तैयार कर दो गई। इस सेना की तैयारी में पेशवा दरबार ने काफी खर्च किया, किन्तु वेल्सली जानता था कि टीपू पर अंगरेज़ों का हमला न्याय विरुद्ध है । वेल्सली के दिल में चोर था, वह उस समय के हालात को भी देख रहा था। उसे भीतर से पेशवा दरवार पर विश्वास न हो सका । उसने पहले पेशवा को यह लिख दिया कि परशुराम भाऊ की सेना पूना के पास हरदम कूच के लिए तैयार रहे और मौके पर उसे मदद के लिए बुला लिया जायगा। उधर टीपू और अंगरेज़ों में लड़ाई छिड़ चुकी थी। पेशवा की सेना तैयार थी और बुलाने की इन्तज़ार में रही। ___३ अप्रैल सन् १७६८ को वेल्सली ने पामर को लिखा कि कम्पनी और उसके बाकी मददगारों अर्थात् निजाम, करनाटक श्रादिक की सेनाएँ टीपू सुलतान को परास्त करने के लिए काफी हैं और पेशवा की सेना अब न बुलाई जायगी । पेशवा दरबार का सारा खर्च और परिश्रम व्यर्थ गया । वेल्सली के इस इनकार का कारण प्रॉण्ट ने इस प्रकार बयान किया है- "टीपू के साथ अंगरेज़ों की लड़ाई छिद जाने के बाद, बावजूद ब्रिटिश रेज़िडेण्ट के बार बार एतराज़ करने के टोपू के वकीलों को खुले पूना दरबार में आने दिया गया। १६ मार्च को करनज पामर को बाजाब्ता सूचना दी गई कि उन बकीखों को दरबार से अलग कर दिया गया है, किन्तु उसके बाद भी ये वकील पूना से केवल २५ मील नीचे एक प्राम