पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१४३

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भारत में अंगरेज़ी राज

५५६ भारत में अंगरेजी राज दूसरी ओर यह भी सम्भव है कि अंगरेज़ रेज़िडेण्टों की प्रथा के अनुसार पामर ने कंवल दौलतराव सींधिया के विरुद्ध वेल्सली के हाथों को अधिक मजबूत कर देने के लिए यह तमाम गप गढ़ी हो और झूठी गवाहियों से उसे पुष्ट करने का प्रयत्न किया हो । करनल पामर ने स्वयं पूर्वोक्त पत्र में वेल्सली को यह भी लिखा कि “इस ख़बर की सच्चाई अथवा विश्वास्यता के विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।" करमल पामर की दी हुई ख़बर सच्ची हो या न हो, इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता कि वेल्सलो और पामर की मीयत बुरी थी। नाना और सींधिया के इरादों में कोई बात न्याय विरुद्ध न थी और ये दोनों जागरूक मराठा नीतिज्ञ भी कूटनीति में अपने अंगरेज़ विपक्षियों को न पा सके। दौलतराव सींधिया के पूना से हटते ही अंगरेजो ने पेशवा . बाजीराव पर इस बात के लिए ज़ोर देना शुरू किया कि तुम कम्पनी के साथ सबसीडीयरी __ साथ चालें सन्धि कर लो। इस सन्धि की आवश्यकता दर्शाते हुए वेल्सलो ने यह लिखा कि कम्पनी को टीपू के साथ युद्ध छिड़ने को सम्भावना है, इसलिए अंगरेज़ अपने सब मित्रों की महायता को पक्का कर लेना चाहते हैं। नाना भी पूना में मौजूद था । उसको सलाह से पेशवा बाजीराव ने सबसीडीयरो सन्धि स्वीकार करने से इनकार कर दिया। किन्तु वेल्सली ने फिर ज़ोर दिया। इस पर पेशवा दरबार ने बजाय कम्पनी के साथ 'सवसी- डीयरी' सन्धि करने के कम्पनी को टीपू के विरुद्ध सैनिक सहायता पेशवा