करनाटक की नवाबी का अन्त ५३१ बात मान ली । २८ जुलाई सन् १८०१ को श्राजमुद्दौला करमाटक की मसनद पर बैठा दिया गया। जिस तरह की सन्धि अंगरेजों ने चाहो उसी तरह की सन्धि पर श्राजमुद्दौला ने दस्तखत कर दिए । इस सन्धि के अनुसार करनाटक का सारा राज कम्पनी के हाथों में श्रागया और श्राजमुद्दौला केवल राजधानी अरकाट और चिपोक के महल का नवाब रह गया। नए नवाब को चिपौक के महल में रक्खा गया। उसी महल में शहजादे अलीहुसेन और उसकी विधवा माँ शहजाद अलाहुसन को कैद कर दिया गया। शहजादे ने कई बार की हत्या अंगरेजों से प्रार्थना की कि मुझे किसी दूसरी जगह भेज दिया जावे, नहीं तो डर है कि नया नवाब किसी रोज़ मुझे खत्म कर देगा, किन्तु सुनाई न हो सकी। चन्द रोज़ के बाद ही एक दिन कहा जाता है कि पेचिश से शहजादे' अलीहुसेन की मृत्यु हो गई । मालूम होता है यह वही पेचिश थी जिससे ३६ साल पहले लॉर्ड क्लाइव के जमाने में मुर्शिदाबाद के नवाब नजमुद्दौला को मृत्यु हुई थी । १७ मई सन् १८०८ को इंगलिस्तान की पालिमेण्ट के सामने शहजादे अलीहुसेन की मृत्यु के सम्बन्ध में क्कृता देते हुए सर टॉमस टरटन ने कहा था-"मुझे विश्वास है इस मामले में कुछ न कुछ दगा अवश्य थी।" पहले की सरह पार्लिमेण्ट के सामने करनाटक का सारा मामला something unfair in this transaction . . he believed there was "-Sir Thomas Turton before British Parliament arth May, 1808
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करनाटक की नवाबी का अन्त