पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१०८

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करनाटक की नवाबी का अन्त

करनाटक की मवाबी का अन्त ५२१ करनाटक के एक बहुत बड़े भाग को अंगरेजी राज में मिला लेना चाहता है । वेल्सली के पत्र में धमकियाँ भी भरी हुई थीं। फिर भी उमवतुल उमरा इतनी आसानी से अपने बाप दादा से मिला हुश्रा राज छोड़ देने के लिए राज़ी न हो सका। इस बीच सुलतान टीपू की मृत्यु हो गई और श्रीरङ्गपट्टन अंगरेजों के हाथों में श्रा गया। जिस सेना ने श्रीरङ्गपट्टन विजय किया, उसमें वे सब पलटने भी शामिल थीं जिनके खर्च के लिए उमदतुल उमरा कम्पनी को ६ लाख पैगोदा सालाना दिया करता था। श्रीरापट्टन की विजय के बाद १३ मई सन् १७६६ को नवाब ने वेल्सली के पत्र के उत्सर में हिम्मत के साथ एक अत्यन्त विनोत, किन्तु उचित और गम्भीर पत्र लिखा। इस पत्र में नवाब उमद्तुल उमरा ने चेल्सली को लिखा- "मैं नहीं समझ सकता कि आपने किन बातों की नवाब उमदतुल विना पर यह राय कायम की है कि मेरी स्थिति खराब - या कमजोर है, न मुझे उन बातों को जानने की भावश्यकता है। मेरे लिए यह जानना काफी है कि मेरा कारबार कम से कम इतना अच्छा ज़रूर चल रहा है कि मैं बखूबी ठीक समय पर अपने चादों को पूरा कर सकता हूं।xxx ___“मैं आपको निहायत साफ शब्दों में, एक नरेश के वचन और ईमान पर विश्वास दिलाता हूँ कि जो जिले सन् १७९२ को सन्धि के अनुसार (भापकी रकम की अदायगी के लिए) प्रजग कर दिए गए हैं, उनमें से एक फुट जमीन भी किसी तरह पर, किसी ज़रिए से खुद या दूसरों की उमराका जवाब