तओर राज का अन्त इतिहास लेखक मिल अंगरेजो के इस फैसले की खदग़रजी और बेइन्साफ़ी को स्वीकार करता है। जिस अंगरेज़ को हम ऊपर नकल करते चले आए हैं वह लिखता है कि-"इन्साफ़ राजा अमरसिंह की ओर था । वही गही का असली हकदार, न्याय्य और सर्वस्वीकृत नरेश और राज का उस समय मालिक था; किन्तु अंगरेजों का स्वार्थ तोर पर कब्जा करने में था।"* __ वास्तव में कम्पनी के लिए अमरसिंह और सार्वोजी में कोई अन्तर न था, उसका असली उद्देश कुछ और ही था, जो सादोजी को गद्दी मिलते ही प्रकट हो गया। तुरन्त सार्बोजो ने एक नए सन्धिपत्र पर दस्तखत कर दिए, जिसमें उसने अपना सारा राज कम्पनी के हवाले कर दिया और स्वयं जीवन भर कम्पनी का एक पेनशनर होकर तओर के किले के अन्दर रहना स्वीकार कर लिया। . Interest declared for the possession of Tangore-justice upheld the claims of the Rajth, the undoubted her the legally acknowledged prince, the actual possessor of the territories -Ibid pp 161,162 MINS
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/१०४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५१७
तज्जोर राज्य का अन्त