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भारत में अंगरेज़ी राज

११६६ भारत में अंगरेजी राज प्रशाघ विजय करने और फिर पजाब द्वारा काबुलपर हमला करने की सलाह दी। जनरल जॉन ब्रिग्ज़ ने ८ मई सन् १८७२ को मेजर ईवन्स बेल के नाम पक पत्र लिखा । इसमें लिखा है कि लॉर्ड ऑकलैण्ड के समय में लॉर्ड लैन्सडाउन के मकान पर इङलिस्तान के मन्नियों और प्रधान नीतिज्ञों की एक गुप्त सभा हुई थी जिसमें यह निर्णय किया गया था कि जिस तरह हो सके भारत की शेष देशी रियासतों को, जो कम्पनी की सामन्त हैं, अन्त करके उनके इलाके को कम्पनी के राज में मिला लिया 1 जाय। लिखा है कि इसी निर्णय के अनुसार बम्बई की सरकार ने कोलाबा की रियासत को, जो खासी बड़ी थी, केवल यह बहाना लेकर कम्पनी के राज में मिला लिया कि वृतक पुत्र को गद्दी का कोई अधिकार नहीं है । इसी के अनुसार कुछ समय बाद लॉर्ड डलहौज़ी ने झाँसी, नागपुर इत्यादि रियासतों को हज़म किया है वास्तव में यह अपहरण नीति इटैलिस्तान के मन्त्रियों की निश्चित नीति थी 1% युद्ध शुरू करने से पहले कम्पनी, महाराजा रणजीतसिंह और शाहशुजा तीनों के बीच एक सन्धि हो गई । रणजीतसिंह की इस सन्धि ने सिन्ध के स्वाधीन अस्तित्व को स्वयु भविष्य के लिए सडेंट में डाल दिया । अंगरेज़ ने शाहशुजा को ले जाकर काबुल के तख्त पर बैठाने का वादा किया शाहशुजा ने अंगरेज़ को सिन्ध में आज़ाद छोड़ने का वचन दिया। • Memoir of General John Briggs, p. 277.