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भारत में अंगरेज़ी राज

१७०६ भारत में अंगरेज़ी राज जैसे उच्चतर गुणों का लोप होते जाना स्वाभाविक और अनिवार्य है। इसी तरह शासित कौम के अन्दर दिन प्रति दिन स्वार्थ। अनैक्षय और कायरता का बढ़ते जाना और प्रेमप्रारमविश्वास तथा साहस का कम होते जाना भी उतना ही स्वाभाविक है। वास्तव में इस प्रकार का अप्राकृतिक सम्बन्ध धीरे धीरे दोनों देशों को नाश तथा मृत्यु की ओर ले जाए बिना नहीं रह सकता। किसी दो देशों में इस तरह का सम्बन्ध संसार के अन्य देशों के लिए भी हितकर नहीं हो सकता। जरमनी, इतालियाजापान अमरीका जैसे बलवान देशों में इङलिस्तान के विशाल साम्राज्य को देख देख कर ईष औौर बेचैनी होना, औौर भारत की गुलामी के कारण अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, इराक, टरकी और मिश्र जैसी निर्वत जातियों की स्वाधीनता का और अधिक ख़तरे में होना स्वाभाविक है। अपने भारतीय साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए ही इइलिस्तान को बार बार अफ़ग़ानिस्तान के मामलों में वेजा हस्तक्षेप की खुझती है । मिश्र के प्रसिद्ध देशभक जाग्रतूल पाशा ने सच कहा था कि भारत पर अपना साम्राज्य बनाए रखने के लिए इडेंलिस्तान को नहर सुएज़ की ज़रूरत है, औौर नहर सुएज़ पर क़ब्ज़ा रखने के लिए मिश्र को पराधीन करने की। इसके आलाबा भारत जैसे विशाल देश के राज से विदेशी शासकों के हाथों में इस तरह के लाखों सस्ते तनख़्ाहदार और आदर्श हीन सिपाही मिल जाते हैं। जिनका अन्य देशों को गलाम बनाने में आसानी से उपयोग किया जा सकता है । सारांश यह कि दो देशों का इस तरह का