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१७०२
भारत में अंगरेज़ी राज

१७०२ भारत में अंगरेजी राज १४ मई सन् १८५९ को बम्बई के गबरनर तलॉर्ड पलफिन्सटन ने अपने एक सरकारी पत्र में लिखा कि "पुराने रोम के शासकों का उसूल थाक्रुद्ध पैजाग्रो और शासन करो' और यही हमारा उक्त होना चाहिए । हमें इस तरह के और वाक्य देने की ज़रूरत नहीं है । वास्तव में किसी देश के अन्दर विदेशी शासन को चिरस्थायी रखने का सबसे ज़बरदस्त उपाय यही हो सकता है । जिस तरह एक मज़हब और दूसरे मज़हब के लोगों में फूट डालने का प्रश्न है, उसी तरह एक प्रान्त और दूसरे प्रान्त के लोगों में। विलय के बाद एक तजवीज़ यह की गई थी कि भारतीय सरकार के अधिकारों को कुछ कम कर दिया जाय और विविध प्रान्तीय सरकारों को अपने अपने यहाँ के शासन में अधिक स्वतन्त्रता दे दी जाय । इस तजवीज़ का नाम उसके असली लक्ष्य को छिपाने के लिए 'प्रान्तीय स्वाधीनता (Provincial autono

my), रक्खा गया । मेजर जी० विनगेट ने १३ जुलाई सन् १८५८

1 को पातिंमेण्ट की सिलेक्ट कमेटी के सामने इस तजबोज़ की ग़रज़ को इस तरह बयान किया था not to endcavour to amalgmate them. Ditid z t injurs should be the principal of Indian Government. "-Lieat-Cotonel John Coke, Comman dent at Muradabad • " Dipit inura was the old Roman Mottoand jt should be ours, "Lord Elphinston, Governor of Bombay, in a Minutedated 14 May, 1859.