पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६६२

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सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद। १६४७ "ताज़ीरात प्रायरलैण्ड” ( प्रायरिश पीनल कोड ) के बारे में। मशहूर अंगरेज़ विद्वान व ने जो शद्र कहे थे वह किसी न किसी दर्जे तक ‘“ताज़ीरात हिन्द" के बारे में भी कहे जा सकते हैं । व ने कहा था-- इस कोड का संग्रह और सम्पादन यही फ़ाय पीयत के साथ किया गया है श्रीर उसके सारे हिस्से एक दूसरे के साथ .ख्य खपते हुए हैं । वह एक यहुत पेचीद मशीन है जिसे बढ़ी प्रीतमन्दी के साथ सय्यार किया गया है । कभी भी किसी चतुरकिन्तु पतित मनुष्य ने किसी औौम पर आस्याचार करने, उसे दरिद्र बना देनेउसे चरित्र भ्रष्ट करने और उसके प्रन्दर के मनुष्यश्घ तक का सयानाश कर डालने के लिए इससे अधिक उपयोभी यन्त्र तथ्यार न किया होगा । दीवानी के क़ानून की पेचीदगियाँ भी मुकदमें बाज़ी को कम करने के स्यान पर बढ़ाने ही में अधिक मदद देती हैं और हज़ारों घरा के सर्वनाश का कारण साबित हो चुकी हैं। प्राजकल की अदालतों और उनकी कार्रवाइयों से भारतवासियों का जो आर्थिक और नैतिक पतन हुना है वह किसी से भी छिपा नहीं है । ये अदाहतें हमें बड़ी हसरत के साथ हजारों वर्षों से चली जाती हुई पौने दो सौ साल पहले तक की उन पंचायतों की याद दिलाती t • " well digested and rel disposed in all its parts 2 maching of wide and iahorate contrivance, and as well itted for the oppression, imoverishment and degratation of a people, and the debasement in them of hunan nature itswli, as ever proceeded from the pewerted ingenuity of सn An, "-bar , en : lith nal Ce,.