पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६५८

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सन् १८५७ के बाद

सन १८५७ के बाद १६४३ ( के ) भारत में रेलों का जारी करना भारत में रेलें उसी - धन से जारी की गई जो अंगरेजों ने मुख्तलि तरोतों से भारत से कमाया था। एक पिछले अध्याय में दिखाया जा चुका है कि इस तरह के कामों के लिए कभी एक पैसा भी इइलिस्तान से लाकर हिन्दोस्तान में ख़र्च नहीं किया गया । इस पर भी पालिमेरठ के एक मेम्बरस्पिष्ट मैकनील ने १४ अगस्त सन् १८६० को कहा था ‘यह हिसाब लगाया जा चुका है कि जितना धन भारत में रेलों पर वर्च किया जाता है, उसमें से हर शिजिन्न पीछे थाठ पेंस (यानी दो तिहाई) इनलिस्तान चला थाता है । इन रेल के मुख्य कार्य हैं भारत से , कपास श्रादि इस लिस्तान भेज सकना, इइलिस्तान का बढ़ा हुआ माल भारत के कोने कोने में पहुँचाना और जरुरत पड़ने पर इधर से उधर तक सेनाओं का ले जा सकना । निस्सन्देह हमारी श्राद्ध कल की पराधीन स्थिति में ये रेले भारतवासियों के धनउनके धाँ और उनके स्वास्थ्य तीन के लिए नाशक और बेशुमार ग्रामों को उजाड़ देने चाली साबित हुई हैं । A थे के ( ख ) रुई की खेती-इलिस्तान को अपने कपड़े के धन्धे

के लिए रुई पहले अमरीका से मंहगे दामों पर लेनी पड़ती थी।

भारत में घरारसिन्ध औौर पजाब अपनी खुन्दर रुई के लिए • It has been computed that out of evey shilling tn railway 3nent । enterprise, 8d. makes its wa to England"House of Srift Mancial in kbe Commos 14th August, 1890