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भारत में अंगरेज़ी राज

'१६८० भारत में अंगरेजी राज किन्तु अगले ही साल विहाब ने यह सारा नक्शा बदल दिया। अंगरेज़ों की आंखें खुल गई, वे समझ गए कि लॉर्ड डलहौजी की । अपहरण नीति ही विश्लब का एक खास कारण थी। उन्हें अब अपना हित और अपने साम्राज्य की स्थिरता हिन्दोस्तान की बाजी देशी रियासतों के कायम रहने में ही दिखाई देने लगी। निस्सन्देह चिप्सव के बाद भी और विश्व क ऐन दिनों में भी कुछ ऐसे अंगरेज़ मौजूद थे, जो रही सही देशी रियासतों को ख़त्म करके अंगरेज़ी राज में मिला लेने के पक्ष में थे । सन् १८५ में लन्दन में “इण्डियन पॉलिसी ( भारतीय नीति )’ नामक एक पत्रिका प्रकाशित हुई, जिसमें भारत के अंगरेज शासकों को यह सलाह दी गई कि हर देशी नरेश के मरने पर वे उसके राज पर क़ब्ज़ा कर लें । किन्तु विचारवान् अंगरेज़ नीतिज्ञों को इस सलाह के मानने में अपने साम्राज्य का हित दिखाई न दिया । यही वजह है कि बिप्लब के बाद से अब तक एक बरमा को छोड़ कर किसी नई देशी रियासत पर फ़ज़ा नहीं किया गया । इसमें भी सन्देह नहीं कि जिस नीति का पिछले ७० साल के अन्दर अंगरेज़ शासकों ने देशी नरेश के साथ व्यवहार किया है, उसका नतीजा यह है कि धीरे धीरे हिन्दोस्तान की करीब करीब सब देशी रियासतें । विदेशी अंगरेजी राज की स्थिरता में किसी तरह का ख़तरा हो * सकने के बजाय विटिश साम्राज्य की ख़ास पोषक बन गई हैं । सन् १७से अब तक हिन्दोस्तान की सैकड़ों छोटी बड़ी रियासतों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया है, जिस तरह ।