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भारत में अंगरेज़ी राज

१६७० भारत में अंगरेजी राज एक अध्याय में दिखा चुके हैं कि भारत के प्राचीन उद्योग धों के | सर्वनाश और भारत की वर्तमान दरिद्रता का मूल कारण सन १८१३ का ‘चाटर’ एक्ट था 1 हर नए चाण्टर एफट में अंगरेज़ क़ौम और अंगरे व्यापारियों के असली उद्देश पर परदा डालने के लिए कोई न कोई वाषय इस तरह का जोड़ दिया जाता था जिससे मालूम हो कि इन विदेशियों का असली मतलब केवल भारतवासियों को उपकार करना है : मिसाल के तौर पर सन् १८१३ के चारटर में लिखा गया कि हिन्दोस्तान के ‘अंगरेज़ी इलाक़ों के बाशिन्दों के सुख और उनके हित को बढ़ाना,इढ़लिस्तान का कर्तव्य’ है, इत्यादि। सन् १३३ के एक्ट में लिखा है : : "इन इलाकों के किसी याशिन्दे को, या इन इलाकों में रहने वाली बादशाह की किसी दरती रियाया को, केवल उसके मज़हब , या जन्म स्थान या नस, या रस की वजह से कम्पनी के मातहत किसी मुलाकृसत, पदवी या पोहदे के अयोग्य न समझा जायगा : सन् १८३३ से सन् १८५३ तक भारत के अन्दर अंगरेज़ी राज की सीमाएँ इतनी बढ़ चुकी थीं कि फिर १८५३ के ‘चारटर एक्ट' से • " To promote the interest and happiness of the inhabitants of the British Dominions, "charter Act of 1813. + " That n० Native of the said territories, nor any naturalborn subject o HIs tajesty resident therein, shall by reason only of his religion, place of birth, descent, color, or any of them, be disabled from holding any place, ffice, or employment under the said company, "SCharter Act of 1833.