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भारत में अंगरेज़ी राज


निस्सन्देह 'पूर्व' का अर्थ यहाँ पर 'पूर्वी देशों के साथ पश्चिमी क़ौमों के सम्बन्ध' का है।

अंगरेज़ों के इस व्यापारी मिशन ने २० सितम्बर सन् १८३७ को काबुल में प्रवेश किया। भोले अफ़ग़ान बादशाह ने बड़े उत्साह के साथ उसका स्वागत किया। मिशन का एक उद्देश यह था कि दोस्तमोहम्मद ख़ाँ को रूस के विरुद्ध अंगरेज़ों के पक्ष में कर लिया जाय। किन्तु यह उद्देश पूरा न हो सका और बर्न्स और उसके साथियों को असफल भारत लौट आना पड़ा।

इस असफलता का कारण यह था कि अफ़ग़ानिस्तान का कुछ पूर्वी इलाक़ा, ख़ास कर पेशावर का दोस्तमोहम्मद की माँग ज़रख़ेज़ ज़िला महाराजा रणजीतसिंह ने अफ़ग़ानिस्तान से छीन कर अपने अधीन कर रक्खा था। दोस्तमोहम्मद ख़ाँ ने कहा कि यदि अंगरेज़ रूस के विरुद्ध अफ़ग़ानिस्तान की मदद चाहते हैं तो इसके बदले में वे अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी इलाक़ा रणजीतसिंह से वापस लेने में मुझे मदद दें। दोस्तमोहम्मद ख़ाँ की माँग बेजा न थी। किन्तु अंगरेज़ों की नीति उस समय अफ़ग़ानिस्तान को अधिक मजबूत करने की न थी। दोस्तमोहम्मद ख़ाँ एक योग्य और बलवान शासक था। अंगरेज़ बहुत दिनों पहले से अफ़ग़ानिस्तान के स्वाधीन अस्तित्व को नष्ट कर देने की फ़िक्र में थे। शाहशुजा उनके हाथों में एक ख़ासा