पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६२०

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सन् ५७ के स्वाधीनता संग्राम पर एक दृष्टि


- सच्चाई का ठीक ठीक पता लगाने के लिए क्रान्ति के दिनों में भारत की यात्रा की। ११ मई सन् १८५र को इइलिस्तान लौट कर लेयर्ड ने लन्दन में एक बता देते हुए कहा जब मैं भारत में था, मैंने हद दरजे को सच्चाई के साथ यह पता लगाने का प्रयत्न किया कि नया किसी भी अंगरे को प्रम भ किया गया। था या नहीं। जिन लोगों को गवरमेण्ट ने इस विषय की जाँच करने के लिए नियुक्त किया था, और जिनके विषय में सुने यह कहते हुए दुःख होता है कि यदि उन्हें भारतवासियों के प्रख्याचारों की एक भी मिसाल मिलती तो वे खुश होकर उसे चिपट जाते, उन लोगों तक ने मुझे विश्वास दिलाया कि उन्हें एक भी मिसाल ऐसी नहीं मिली जिसमें किसी अंगरे को आम भन्न किया गया हो । इसके विपरीत बेशुमार मिसालें ऐसी सिताती हैं जिनमें हमारी सेना ने (अंग भंग करके) भयवर बदत किया x 9 निस्सन्देह इस बयान में उन अंगरेज़ पुरुषों का जिक्र नहीं है। जो युद्ध में लड़ते हुए कटे । एक दूसरे स्थान पर लेयर्ड ने कहा - “अरयम्स सावधानी के साथ जाँच करने के बाद, सबसे उत्तम और सयसे अधिक विश्वसनीय लोगों से मुझे जो कुछ सूचना मिली है, उससे ' मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि दिल्ली, कानपुर, रूसी और अन्य ई स्थानों पर जो अनेक भीषण आस्याचार कहा जाता है कि अंगरे स्वि और ने यों के ऊपर किए गएवे सब के सय, प्रायः यिना एक भी अपवाद के, मूटे । h Bvt. Layard t . P., Tu lle cay Naam, May 17th1888, 0, 690