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भारत में अंगरेज़ी राज

१२० भारत में अंगरेजी राज साथ पत्र व्यवहार करता रहा और दक्खिन के आने सरदारों और नरेशों को क्रान्ति की घोर करने के प्रयत्न करता रहा। १३ जुलाई सन १८५७ को कोल्हापुर की देशी पलटन बिगड़ी सिपाहियों ने अपने कुछ अंगरेज़ अफसरों को मार डाला और खाने पर क़ब्ज़ा कर लिया । किन्तु चन्द्र महीने के अन्दर ही अंगरेज़ ने वहाँ के क्रान्ति कारियों का दमन कर दिया । १५ दिसम्बर को महाराजा के छोटे भाई त्रिमना साहब की मदद से कोल्हापुर के नगर में फिर विप्लव शुरू होगया । नगर के फाटक बन्द कर दिए गए, फ़सील पर तोर्ष चढ़ा दी गईऔर स्वाधीनता का ढिंढोरा पिटवा दिया गया । अंगरेज़ी सेना पहुँचीख़ासा घमासान संग्राम हुआ 1 किन्तु विजय अंगरेजों की ही रही। विजय के बाद अनेक लोग तोपों के मुंह से उड़ा दिए गए । अगस्त सन् ५७ में बेलगाँव की देशी पलटन में क्रान्ति के लक्षण दिखाई दिए । नेताओं को तोप के मुंह से अन्य स्थान उड़ा दिया गया। बेलगाँव और धारवाड़ को शान्त कर दिया गया । रझो बापूजी का एक बेटा फाँसी पर लटका दिया गया। सतारा रजकुल के दो व्यक्तियों को निर्वासित कर दिया गया। रनो बापूजी सता से हट गया उसके पकड़ने के लिए बड़े बड़े इना का एलान किया गया । किन्तु उसका पता न चला । बम्बई की कुछ देशी पलटनों ने निश्चय कर रक्खा था कि पहले बम्बई शहर में शान्ति प्रारम्भ की जायफिर पूना जाकर पूना