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भारत में अंगरेज़ी राज

सहेलियों स हित शरबत पी रही थी, ख़बर मिली कि कम्पनी की सेना बढ़ी चली आ रही है । तुरन्त शश्वत का कटोरा फेंक कर* रानी अपनी सहेलियों सहित भागे बढ़ी । लक्ष्मीबाई उस दिन मरदाना वेप में थी। एक अंगरेज दर्शक लिखता है- "तुरन्त सुन्दर रानी मैदान में पहुंच गई । सर का रोल की सेना के मुकाबले में उसने दृढ़ता के साथ अपनी सेना को खड़ा किया है यार या उसने प्रचण्ड वेग के साथ सर ए , ' की सेना पर हमला किया । रानी का दल कई स्थानों पर शत्रु के गोतों से बिंध गया । उसके सैनिकों की संख्या निरन्तर कम होती चली गई है फिर भी रनी सा सबक आगे दिखाई देती थी । वह चार बार अपनी बिखरी हुई सेना को जमा करती रही और पद पद पर अलौकिक वीरता का परिचय देती रही । किन्तु इस सब से भी काम न चला । स्वयं सर ए रोज़ ने आपने सोंढनी सकारों सहित लगे बढ़ कर रानी लक्ष्मीबाई की अन्तिम व्यूह रचना को तोड़ डाला । इस पर भी बीर और निर्धक रानी अपने स्थान पर डटी रही ।" जब कि रानी लक्ष्मीबाई इस ‘अलौकिक वीरता के साथ सर से यू रोज़ का मुक़ाबला कर रही थी, शेप अंगरेजी सेना श्रन्य क्रान्ति- कारी दलों को चीरती हुई पीछे की ओर से रानी पर न टूटी। लक्ष्मीबाई व दोनों छोर से घिर गई। ग्वालियर की तोपें ठण्डी हो गई। मुख्य सेमा तितर बितर हो गई। विजयी अंगरेज़ सेना चारों ओर से रानी लक्ष्मीयाई का । के अधिकाधिक निकट वढ़ी आ रही थी। रानी अत शौर्य अहुत के पास केवल उसकी दोनों सहेलियाँ और १५