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लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मोघाई और तात्या टोपे १६१५ संग्राम पुथल मच गई। राबखाइव घबरा गया । लक्ष्मीबाई ने फिर एक यार बिखरी हुई सेना में नई जान फेंकी1 उसने फिर से सेना । की व्यूह रचना की और नगर के पूर्वीय फाटक की रक्षा का भार स्वयं अपने ऊपर लिया । लक्ष्मीबाई के साथ उसकी दो सहेलियाँ मन्दरा और काशी घोड़ी पर सवार बीरता के साथ शल चला रही ग्वालियर का थेथीं । प्रसिद्ध सेमापति जनरल स्मिथ अब लक्ष्मीबाई के मुक़ाबले के लिए बढ़ा। कई बार स्मिथ की सेना ने पूर्व फाटक पर हमला कियाकिन्तु हर बार उसे हार कर पीछे हट जाना पड़ा । कई बार रामी लक्ष्मीबाई ने फाटक से निकल कर बाहर की सेना पर हमला किया और अनेक शशु को मैदान में समाप्त कर फिर अपने फाटक को श्रा सँभाला। लिखा है लक्ष्मीबाई उस दिन सुबह से शाम तक घोड़े पर सवार बिजली की तरह इधर से उधर जाती हुई दिखाई देती रही । अन्त में जनरल स्मिथ को उस चोर का प्रयल छोड़ कर पीछे हट जामा पड़ा। १७ जून सन् १९८५८ का मैदान रानी लक्ष्मीबाई के हाथों रहा । १८ जून को जनरल स्यि और अधिक सेना लेकर फिर उसी फाटक पर पहुँचा । उस दिन अंगरेज़ी सेना ने ' कश्मीयाई फी कई ओर से ग्वालियर के किले पर हमला किया। घोरता जनरल स्मिथ के साथ सेनापति सर रोज़ भी रानी लक्ष्मीबाई के मुक़ाबले के लए पृय फाटक के के सामने दिखाई दिया। बहुत सवेरे, जब कि लक्ष्मीबाई अपनी दोनों १०२