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भारत में अंगरेज़ी राज

१६१० भारत में अंगरेजी राज A दत के लिए शर्त पर विजय प्राप्त कर सकना शधिक कठिन न होता । किन्तु इन क्रान्तिकारियों में कोई एक व्यक्ति ऐसा न था । जो दोप सत्र को अपनी श्राशा के अधीन कर सके। रानी सब से ग्रोग्य थी, किन्तु बह ली थी और उसकी प्रायु केवल २२ वर्ष की थी। तात्या टोपे बीर औौर दक्ष सेनापति था, किन्तु बह एक साधारण घराने में उत्पन्न हुना था । प्राचीन ख़ानदानी नरेशों का पक स्त्रो के या साधारण कुल में पैदा हुए मनुष्य के मातहत काम करना उस समय तक इतना सरल न था । ठीक यही दोप दिल्ली के पतन का भी मुख्य कारण रद्द चुका था । फिर भी रानी लक्ष्मोघाई कुछ सेना लेकर कालपी से ४२ मील दूर कश्चगाँव पहुँची। कश्चगाँव में फिर सर झ यू रोज़ की सेना से लक्ष्मीबाई को सेना का 'थामना सामना हुश्रा । नेताओं में मतभेद और अव्यवस्था बनी रही। किसी ने रानी को यथेच्छ सहायता न दी। नतीजा ग्रह हुथा कि कगाँव में फिर क्रान्तिकारियों की हार रही। इतिहास लेखक मॉलेस्लम ने बड़ी प्रशंसा के साथ लिखा है कि पराजय के बाद क्रान्तिकारी सेना आश्चर्यजनक व्यवस्था के साथ कालपी की ओर लौट आई ।# किन्तु मालूम होता है यह व्यवस्था उनमें 'पराजय के बाद पैदा हुई । सर - रोज़ ने अब कालपी पर हमला किया लक्ष्मीबाई ने अपनी पराजित सेना को फिर से प्रोत्साहित कालपी का संग्राम किया । वह अपने सवारों सहित स्वयं सर झू,

  • Atalleson's Incian Muity, vol. v, p .