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१६०५
लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे

लक्ष्मीबाई औौर तात्या टोपे १६०५ ख़िलत बाँटती हुई, बिजली की तरह इधर से उधर तक फिर रही थी। शत्रु ने पहले नगर के उत्तर की ओर सदर टरबाज़े पर ज़ोर दिया 1 श्राठ स्थानों पर सीढ़ियाँ लग गई। रानी की तोपों ने अपना काम जारी रखा । अंगरेज़ असर डिक औौर मिचेलजॉन ने सीढ़ियों पर चढ़ कर अपने साथियों को ललकारा, किन्तु तुरन्त दो गोलियों ने इन दोनों वहाढर अंगरेजों को यहीं पर ढेर कर दिया। बोनस और फॉप्स ने उनका स्थान लिया, वे दोनों भी मार डाले गए 1 आठों सीढ़ियाँ टूट कर गिर पड़ीं इतिहास लेखक लो लिखता है कि झाँसी की दीवारों से गोलों और गोलियों की बौछार उस दिन श्रत्यन्त ही भीषण थी, जिसके कारण अंगरेजी सेना को पीछे हट जाना पड़ा । किन्तु जय कि उत्तर की ओोर सट्टर ट्रघा की यह स्थिति थी, कहते हैं कि किलो भारतीय विश्वासघातक विश्वासघातक की की सहायता सेना से कम्पनी की दक्खिनी करतूत दरवाजे से नगर में घुस श्राई। इसके बाद कम्पनी की सेना एक स्थान के बाद दूसरा स्थान विजय करती हुई महल की ओर बढ़ चरती। रानी ने किले की फ़सील पर से नगरनिवासियों के संहार और उनकी बरबादी को देखा। वह तुरन्त पक रानी हजार सिपादियों सहित अंगरेजी सेना की ओर कचमीयाई का प्रपत्र लपकी । दोनों ओर से बन्दूकों को फेंक कर तलवारों को लड़ाई होने लगी। दोनों औोर अनेक जामें गईं।