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१६०४
भारत में अंगरेज़ी राज

१६०४ भारत में अंगरेज़ी राज श तात्या टोपे अपनी सेना सहित जमना के उत्तर में था। जमना पार कर आंव बह चरखाी के राजा के यहाँ चरखारी का राजा से संग्राम पहुँचा । चरखारी के राजा ने स्वाधीनता में भाग लेने से इनकार कर दिया था । तात्या ने चरखारी पर हमला किया, राजा से ३४ ताप छोनी और तीन लाख रुपये युद्ध क ख़र्च के लिए वसूल किए । इसक बाद तात्या कालपी पहुँचा। कालपी में उसे रानी लक्ष्मीबाई का एक पत्र मिला जिसमें रानी ने उससे झाँसी की मदद के लिए पहुँचने की प्रार्थना की थी। तात्या झाँसो की ओर बढ़ा, लिखा है के तात्या के के अधीन एक विशाल सेना थी। कम्पनी की सेना एक बार सर्कट में पड़ गई, सामने की ओर रानी लक्ष्मीबाई और पीछे की ओर तात्या टोपे की सेना । किन्तु कम्पनी की सेना ने इस समय खासी हिम्मत से काम लिया औौर तात्या की सेना न मालूम होता है काफ़ो कायरता दिखाई । १ अप्रैल को अंगरेजी सेना ने साहस के साथ पीछे मुड़ कर तात्या की सेना पर हमला किया । तस्या के करीब डेढ़ हज़ार ' आदमी मारे गए। उसकी तोपें अंगरेजों के हाथ आई । झाँसी की स्थिति अब और भी अधिक निराशाजनक होगई, फिर भी रानी लक्ष्मोवाई ने हिम्मत न हारी। क्रान्तिकारियों की ३ अंगरेजी सेना ने अप्रैल को झाँसी पर स्थिति अन्तिम बार हमला किया। चारों ओर से एक साथ शाक्रमण होने लगा । रानी अपने घोड़े के ऊपर सवार सिपाहियों और अफसरों के हौसले बढ़ाती हुईउनमें जेवर और