पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५५०

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अवध और बिहार

अवध और विहार १५३ t । कहीं भी भारत में न रहा था1 कम्पनी की सेनाएँ इस समय चारों चोर फैलती जा रही थीं । पलट पर अंगरे की पलटन इनलिस्तान से भरती हो होकर भारत श्रा विशाल लेना रही थीं। विशाल भारतीय साम्राज्य को अपने हाथौं से खिसकता देख कर इइलिस्तर के शासकों ने उस समय अपनी सारी शक्ति भारतीय क्रान्ति के दमन करने में लगा रखी थी । पहली अप्रैल सन् १८५८ को कम्पनी की हिन्दोस्तानी सेना गौोर देशी रियासतों को सेना के श्रतिरिक्त कम्पनी के पास भारत में ७६,००० गोरी सेना थी। अंगरेज़ क़ौम के बड़े से बड़े अनुभवी सेनापति भारत में मौजूद थे । दूसरी ओर सिखों और गोरखों दोनों ने अपनी पूरी शक्ति से अंगरेजों का साथ दिया। क्रान्तिकारियों के अन्दर अव्यवस्था बढ़ती जा रही थी। दिएली, कानपुर और लखनऊ जैसे केन्द्र हाथ से निकल चुके थे । इस परिस्थिति में अवध और रुहेलखण्ड के नेताओं ने इधर उधर फैले हुए क्रान्तिकारियों के नाम यह श्राज्ञा प्रकाशित की- मुम लोग विधर्मियों की याज़ामता सेनाओं का खुले मैदान में सामना करने का प्रया न करोक्योंकि उनमें व्यवस्था इससे बढ़ कर है पर उनके ) पास बड़ी बड़ी तोपें हैं । उनके माने जाने पर दृष्टि रखरखो, दरियों के तमाम घाटों पर भ्पना पहरा रखो, उनके पत्र व्यवहार को बीच में रोक दो, उनकी रसद को रोक लो, उनकी डाक और चौकियों को तोड़ दो और सद्दा उनके कैंप के इधर उधर फिरते रहो। फिरद्दी को बिलकुल चैन न लेने दो!'s

  • Russels Diar, p, 376.