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अवध और बिहार

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कमी उत्पन्न हो गई थी। जिस प्रकार दिल्ली को सेना में वक्त खाँ के विरुद्ध उसी प्रकार लखनऊ की सेना में ग्रह्म क्रान्तिकारियों में शाह के विरुद्ध कुछ लोग प्रति स्पर्धा अनुभव प्रमुशासन की करने लगे थे। आहटशद की प्राश का ग्रीच्छ पालन न होता था। कैम्पबेल के पहुँचने से पहले सर जेम्स ऊरम चार हजार सेना सहित आलमबाग में मौजूद था। अहमदशाह ने कई बार चाहा कि ऊरम पर एक जोरदार हमला करके उसकी सेना को समाप्त कर दिया जाय । किन्तु आहमदशाह की न चल सकी। प्रतिस्पर्धा यहाँ तक बढ़ी कि कुछ लोगों के जोर देने पर कहा जाता है, एक वार बेगम ने अहमदशाह को कैद तक कर दिया । किन्तु सेमा और जनता दोनों में अहमदशाह इतना सर्वप्रिय था कि श्रीन ही उस फिर छोड़ देना पड़ा। इसके बाद कैम्पबेल की सेना तखनऊ पहुँची 1 अहमधुशाह ने फिर सेना का नेतृत्य ग्रहण किया। जितनी वार भारतीय सेना ने तालमवाल पर हमला किया, मलयी ग्रह्मद शाह अपने घोड़े या हाथो के ऊपर प्राय: सदा सब से प्रागे लड़ता हुआ दिखाई पड़ता था । १५ जनवरी सन् १८५८ के संग्राम में मौलवी अहमदशाह के एक हाथ में गोली लगी। १७ जनवरी को क्रान्तिकारियों का एक और मुख्य सेनापति विदेही हनुमान घायल होकर पकड़ा गया। इसी समय राजा बालकृष्णसिंह की भी मृत्यु होगई। १५ फरवरी को हाथ का घाव कुछ अच्छा होते ही अहमदशाह फिर मैदान में