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भारत में अंगरेज़ी राज

१५५० भारत में अंगरेजी राज t t पास नाना के मुकांवले के लिए काफ़ी सेना न थी। उसने तुरन्त हैवलॉक को सूचना दी। हैवलॉक के लिए अब लखनऊ की ओर बढ़ सकना असम्भव हो गया ११ अगस्त को दोबारा राझा पार कर हैबलॉक को कानपुर लौट आना पड़ा। हैवलॉक के गड्रा पार करते ही बधनिवासियों के हौसले दुगुने होगए 1 इतिहास लेखक इन्स लिखता है अवधनिवासि अवध से हमारी सेना के तौट थाने का परिणाम के हौसले वह हुआ जिसका हैवलॉक को निस्सन्देह अनुमान तक न था । सारलुलेदारों ने खुले तौर पर इसका मतलब यह लिया कि अंगरेजों ने अवध का प्रदेश ख़ाली कर दिया । अब उन्होंने लखनऊ दयार को बाज़ाख़्ता अपनी नियामक सरकार स्यीकार कर लिया और यद्यपि वे उस सरकार की सहायता के लिए स्वयं लखनऊ नहीं पहुँचेफिर भी लखनऊ दरबार की जिन ग्राझारों को अभी तक उन्होंने नहीं सोना था उन ग्राझाओं का श्रेय उन्होंने पालन करना शुरू कर दिया । लखनऊ दरबार ने जितने जितने सैन्यबल इम लो से सगे थे वे अब इन्होंने युद्ध के लिए लखनऊ भेज दिए ।' वास्तव में यह आश्चर्यजनक प्रभाव उन्नाव और बशीरतगल के ग्राम निवासियों की वीरता का परिणाम था। कानपुर ही हैवलॉक को सूचना मिली कि नाना साहब पहुचत ने बिटूर पर फिर कब्ज़ा कर लिया है। १७ हैवलॉक की अगस्त को हैवलॉक ने नाना की सेना पर चढ़ाई की। एक घमासान संग्राम के बाद दोनों और घबराहट • Tak S&nby RMayby Innes.