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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पक्षाब औौर वीव की घटनाएँ १५२8 का पुराना बदला चुकाना चाहता है औौर छत से बहादुरशाह को फंसाना चाहता है । इस पर वह यहाँ तक बढ़ी कि निर्वोप बत खाँ ने मिरज़ा इलाहीबख़्श पर तलघार खींच ली। किन्तु स्वयं बहादुरशाह ने उसका हाथ रोक लिया। निस्सन्देह मिरज़ा इलाही बख़्श का कोई न कोई तीर नेक, किन्तु बूढ़े तथा निर्वत बहादुशाह पर अवश्य चल गया । अन्त म वहादुरशाह ने बख़्त खाँ से ये शबू कई ३ ‘बहादुर ! मु तेरी हर बात का यक़ीन है और मैं तेरी हर राय को दिल से पसन्द करता हूँ । सगर जिस्म की कूवत ने जवाब दे दिया है । इसलिए मैं अपना मामला तकदीर के हवाले करता हैं। मुझको मेरे हाल पर छोड़ दो और बिस्मिल्लाह को ! यह से जाग्रो और कुछ काम करके दिखाथो ! मैं नहीं, मेरे ख़्ान्दान में से नहीं, न सही, तुम या और कोई हिन्दोस्तान की लाज रखे 1 हमारी फ़िक्र म , आपने फर्ज को अक्षम दो ५ि.8 कर दिल्ली के समस्त स्वतन्त्रता संग्राम का यदि मुकुट बहादुरशाह था और हाथ पैर इज़ारों हिन्दू और मुसलमान बम्रत रत्र की वीर सिपाही थे , तो उस संग्राम का दिल और निराशा दिमाग बख़्त ख़ाँ था । वहादुरशाह के इस उत्तर से बख़्त स्त्राँ का दिल टुकड़े टुकड़े हो गया । बह गरदन नोची करके मकवर क पूबा दूरवाजे स बाहर निकल पाया। %‘देहली की जाँकनी'—लेग्नक टूयाज़ा हसन निज़ामी ।