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भारत में अंगरेज़ी राज

११४६ भारत में अंगरेजी राज यूरोपियन ढंग की उन्नति में लगा दें,x फिर पुराने ढंग पर भारत को स्वाधीन करने की इच्छा ही उनमें से जाती रहेगी और उनका कथ्य ही यह । न रह जायगा । देश में अचानक राजक्रान्ति फिर असस्थ हो जायगी और हमारे लिए भारत पर अपना साम्राज्य कायम रखना बहुत काल के लिए यदिग्ध हो जायगा ।४ x : भारतवासी फिर हमारे विरुद्ध विनोह न करेंगेफिर उनके राष्ट्रीय प्रयत यूरोपियन शिक्षा प्राप्त करने और उसे । फैलाने और अपने यहाँ यूरोपियन संस्थाएँ क़ायम करने में ही पूरी तरह लगे रहेंगेजिससे हमें कोई हानि न हो पाएगी 1 शिक्षित भारतवासीx N x स्वभावतः हमसे चिपटे रहेंगे ।x हमारी समस्त प्रज में किसी भी श्रेणी के लोगों के लिए हमारा अस्तिव इतना सर्वथा आवश्यक नहीं है जितना उन लोगों के लिएजिनके विचार अंगरेज़ी सचे में ढाले गए हैं । ये लोग । शुद्ध भारतीय राज के काम के ही नहीं रह जाते, यदि जल्दी से देश में न् । स्वदेशो राज कायम हो जाय तो उन्हें उससे हर प्रकार का भय रहता ‘हें X N x 1 । ‘' ” हैं मुझे आशा है कि थोड़े ही दिनों में भारतवासियों का सम्बन्ध हमारे साथ वैसा ही हो जायगा जैसा किसी समय हमारा रोमन ? ‘लोगों के साथ था । रोमन विद्वान टैसीटस लिखता है कि जूलियस 'ऐग्रीकोला की ( जी ईसा से ७८ वर्ष बाद इनलिस्तान का रोमन गवरमर ! 'नियुक्त हुआ था और जिसने उस देश में रोमन साम्राज्य की नीों को 'पक्का किया ) यह नीति थी कि बड़े बड़े अंगरेजों के लड़कों को रोमन साहिस्य औौर रोमन विज्ञान की शिक्षा दी जाय और उनमें रोमन सभ्यता के ऐश धारम की रुचि पैदा कर दी जाय । हम सब जानते हैं कि जूलियस