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भारत में अंगरेज़ी राज

१५१ भारत में अंगरेजी राज - समझदार था किन्तु वह एक सामान्य सेनापति था। यह किसी शाही घराने में पैदा न हुआ था। उच्च कुल का घमण्ड अभी तक भारतवासियों में मौजूद था । दिल्ली की अनेक सेनाओं के सेनापति छोटे मोटे नरेश या राजकुलों के लोग । । उन लोगों पर बढ़त थ ख़ा का प्रभाव न पड़ता था । उनमें से कोई कोई बख़्त खाँ के साथ ईर्षा भी अनुभव करने लगे थे । दिन प्रति दिन आपस की कशमकश बढ़ती गई । सम्राट बहादुरशाह ने सव को समझाने का प्रयत्न किया किन्तु सफलता न मिल सकी। दिल्ली में उस समय योग्य और शक्तिशाली नेता की आवश्य- कता थी। जोधपुरसींधिया औौर होलकर जयपुर , देशी नरेशों के जैसे नरेश राष्ट्रीय क्रान्ति के साथ देने का अन्त नाम बहादुरशाह तक निश्चय न कर सके । अन्यथा महाराजा सधिया जैसे प्रभावशाली आदमी का एक बार दिल्ली में जाकर इस कमी को पूराकर सकना कोई कठिन कार्य न होता। वास्तव में दिल्ली के अन्दर की यह जबरदस्त कमी ही सन् ५७ के स्वाधीनता युद्ध की श्रन्तिम सफलता का एक मुख्य कारण हुई। दिल्ली के श्रन्र एक बार करीब पचास हजार सन्नद्ध सेना थी। यदि यह विशाल सेना फ़सील के नीचे की अंगरेजी : सेना को समाप्त कर विजय के उत्साह में भरी हुई एक बार शेप भारत पर फैल जाती तो निस्सन्देह इसके बाद का क्रान्ति का नक्शा विलकुल बदल गया होता। सम्राट बहादुरशाह इस कमी को पूरी तरह समझ रहा था। का पत्र