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भारत में अंगरेज़ी राज

११४४ भारत में अंगरेज़ी र सर चाल्र्स ट्रबेलियन ने सम् १८५३ की पार्लिमेण्टरी कमेटी के सामने 4भारत की भिन्न भिन्न शिक्षा प्रणालियों वतमान अंगरेजी के राजनैतिक परिणाम’ शोषक एक पत्र लिख शिक्षा का उद्देश कर पेश किया । यह पत्र इतने महत्व का है और ब्रिटिश सरकार की शिक्षानीति का इतना स्पष्ट द्योतक है कि उसके कुछ अंशो का इस स्थान पर उद्धत करना आवश्यक है । भारत- वासियों को अरबी और संस्कृत पढ़ाने या उनके प्राचीन विचारों और प्राचीन राष्ट्रीय साहित्य के जीवित रखने के विषय में सर चार्य देवेलियन लिखता है कि इसका परिणाम यह होगा-. मुसलमानों को सदा यह बात याद आाती रहेगी कि हम विधत ईसाइयों ने मु मानों के अनेक सुन्दर से सुन्दर प्रदेश उनसे छीन कर आपने अधीन कर लिए हैं, और हिन्दुओं को सदा यह याद रहेगा। कि अंगरेज़ लोग इस प्रकार के अपविन रक्षस हैं, जिनके साथ किसी तरह का मेल जोल रखना लज्जाजनक और पाप है । इमारे बड़े से बड़े शत्रु भी इससे अधिक और कुछ इच्छा नहीं कर सकते कि हम इस तरह की विद्या का प्रचार करें जिनसे मानव स्वभाव के उम्र से उम्र भाव हमारे विरुद्ध भड़क उठे। ‘‘इसके विपरीत अंगरेज़ी साहिश्य का प्रभाव अंगरेजी राज के लिए हितकर हुए बिना नहीं रह सकता । जो भारतीय युवक हमारे साहित्य द्वार हमसे भली भाँति परिचित हो जाते हैं, वे हमें विदेशी समझना प्र।यः बन्द कर देते हैं । वे हमारे महापुरुषों का जिक्र उसी उरसह के साथ करते हैं। जिस उत्साह के साथ कि हम करते हैं। हमारी ही सी शिक्षा, हमारी ही सी रुचि और हमारे ही से रहन सहन के कारण इन लोगों में हिन्दोस्तानियत