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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

के दिल्लीपड़ाव और बीच की घटनाएँ - १४४६ इलाहाबाद पहुंचा, जनरल नील ने थोड़ी सी समा इलाहाबाद की रक्षा के लिए रख कर शेप मेजर रिनॉड के अंगरेजी सेना की । अधीन कानपुर के अंगरेजों की सहायता के लिए कानपुर यात्रा भेज दी। यह सेना जनरल मील की स्थापित को हुई मर्यादा के अनुसार दोनों ओर के नामों को आग लगाती हुई कानपुर की ओर बढ़ी। एक दूसरा जनरल हैवलॉक जून के अन्त में इलाहाबाद पहुँचा । इसी बीच कानपुर में अंगरेजों की पराजय और सतीचौरा घाट के हत्याकाण्ड का ससचांर भी इलाहाबाद पहुँच गया। जनरल हैवलॉक भी श्र अंगरेज और सिख सेना और तोपखाने सदित कानपुर की ओर बढ़ा। आगे चल कर हैवलॉक और रिमांड को सेनाएँ मिल गई। मार्ग के ग्रामों को ग्रामवासियों सहित जलाने का कार्यक्रम पूर्ववत् जारी रहा। कम्पनी की सेना की इस यात्रा के विषय में इतिहास लेखक सर चार्ल्स डिक लिखता है- सन् १८५७ में जो पत्र इनलिस्तान पहुँचे उनमें एक ऊँचे दरजे का थतसर, जो कानपुर की श्ोर अंगरेनी सेना की यात्रा में साथ धr, लिखता ' है कि फिा “मैंने आज की तारीख़ में स्कूब शिकार मारा । बागिों को उड़ा दिया ।’ यह याद रखना चाहिए कि जिन लोगों को इस प्रकार फोंसी दी गई या तोप से उड़ाया गया वे सशस्त्र ‘बाती' न थे, बल्कि गाँव के रहने वाले थे जिन्हें केवल ‘सन्देह पर पकड़ लिया जाता था 1 इस कूच में गाँव के गाँव इस क्रूरता के साथ जला डाले गए और इस क्रूरता के साथ मिथुप ग्राम