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दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ १४४७ खींधिया की सेना दोनों के बीच में पिस कर कम्पनी की सेना बहीं

  • समाप्त हो गई होती, और क्रान्तिकारियों के पक्ष को भारत भर में

अनन्त यल प्राप्त हो जाता। करीब करीब यही स्थिति इन्दौर के महाराजा होलकर की थो। १ जुलाई को समादृत खाँ के अधीन इन्दौर की इन्दौर और मध्य सेना ने की पर हमला किया। इन्दौर रेजिडेन्सी भारत की स्थिति बहाँ के सब श्रदुरेजों की जान बख्श दी गई। वे इन्दौर छोड़ कर भाग गए। किन्तु अझर इतिहास लेखक भी इस बात का निश्चय नहीं कर पाते कि महाराजा होलकर की सहानुभूति अइरेज़ों के साथ थी या क्रान्तिकारियों के साथ। यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस तरह के अवसरों परजब कि भारतीय नरेश अन्त तक अपना निश्चय न कर सकेरियासतों की सेना और कम्पनी की सबसीडीयरी सेनाओं ने हर जगह देश का साथ दिया । यही स्थिति कच्छ और राजपूताने की रियासों की थी। इतिहास लेखक मॉलेसन लिखता है की जयपुर और जोधपुर के राजाओं ने अपनी सेनाओं को ग्राझा दी कि जाकर आइरेजों को मदद करोकिन्तु सिपाहियों और उनके अफसरों ने ) साफ इनकार कर दिया 10 यही हाहत भरतपुर और अन्य कई रियासतों को भी थी। आगरे की ५ जुलाई को क्रान्तिकारी सेना ने नागरे पर स्वाधीनता हमला किया। नागरे में कुछ गोरी सेना मौजूद

  • Mallesons lacian Miulir, vol . Al1, 7. 172,