दिल्लीपवाब और वीच की घटनाएँ १८५ सिपाही ने चुपके से मैगज़ीन में आग लगा दी । कई अंगरेज उस - भारतीय सिपाही के साथ साथ वहीं पर जल कर ख़ाक हो गए । इतिहास लेखक के इस अज्ञात सिपाही की सूझ और उसकी वीरता की प्रशंसा करते हुए लिखता है इससे हमें यह शिक्षा मिली कि विद्रोहियों में इस प्रकार के बीर गौर साहसी लोग मौजूद थे जो राष्ट्रीय हित के लिए तरक्षण प्राण देने को तैयार थे ।।” दिल्ली की सेना उस दिन पीछे लौट गई । अगले दिन ३१ मई को बह मेरठ की सेना का मुकाबला करने के अंगरेज़ी और लिए फिर नगर से निकली । दोनों ओर से क्रान्तिकारी सेना """ गोलेवारी होने लगी । लिखा है कि उस दिन अंगरेजों की ओर बहुत अधिक जानें गई । शाम को दिल्ली की सेना अंगरेजी सेना को एक बार तितर बितर करके फिर दिल्ली की ओर वापस चली गई । में संग्राम से एक अगले दिन १ जून को मेजर रीड के अधीन एक गोरखा सेना मेरठ को अंगरेजी सेना की सहायता के गोरखों का लिए मौके पर पहुँच गई। अम्बाले से जनरल देशद्रोह बरनार्ड के अधीन अंगरेज और सिख सेना भी . ७ जून को इस सेना से आ मिली । दिल्ली के मोहासरे के लिए
- “It taught s that, among the mutineers, there are brave and despe
rate men who were ready to court instant death for the sake of the national cause !"-Kaye's Hstory of Mik Soy IMar, wol . fi, p, 138.