पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३९२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४६५
प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४६५ घमासान संग्राम हुआ। अन्त में हार कर सर हेनरी लॉरेन्स को पीछे हटना पड़ा। अंगरेजों की तीन तोपें मैदान में रद्द गई । सर हेनरी लॉरेन्स को लौट कर रेज़िडेन्सी में श्राश्रय लेना पड़ा । । इसके बाद क्रान्तिकारियों ने मच्छीभयम और रेजिडेन्सी दोनों को घेर लिया। अंगरेजों ने मच्छीभवन के मैगज़ीन को नारा लगा दी । मच्छभवन भी क्रान्तिकारियों के हाथों म" आ ा गया । ।’’ का शासन लखनऊ के अन्दर समस्त ग्रंगरेज़ी सत्ता अब रेजिडेन्सी के. मकान में कैद हो गई । उसमें क़रीब एक हजार वेराम हजरत महल अंगरेज औरथाठ सौ हिन्दोस्तानी थे । श्र " शाल और रसद का सामान काफ़ी था । क्रान्ति- कारियों ने चारों ओर से रेजिडेन्सी को घेरे रखा। लखनऊ के शेष नगर और समस्त अवध पर वाजिदपुल शाह के पुत्र शाहज़ादे विरजिस कद्र की ओर से बेगम हजरत महल का शासन कायम हो गया 1 मॉलेसन लिखता है ‘‘समस्त अवध ने हमारे विरुद थियार उठा दिए थे 1 न केवल बाज़ाब्ता फ़ौज ही, बल्कि पदच्युत नचाय की फ़ी के साठ हज़ार श्रावमी, ज़मींदार, उनके सिपाही, ढाई सौ किले —जिनमें से बहुतों पर भारी तोपें 'लगी हुई थीं-सब के सब हमारे विरुद्ध खड़े हो गए । इन लोगों ने कम्पनी के शासन को अपने नबायों के शासन के साथ तोड़ कर देख लिया था और करीब करीब एक मत से यह फ़ैसला कर दिया था कि उनके अपने नबायों