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भारतीय शिक्षा का सर्वनाश

भारतीय शिक्षा का सर्वनाश ११३३ सन् १८१३ में इंग लिस्तान की पालिमेण्ट ने जो चारटर, एक्ट पास किया, उसमें एक धारा यह भी थी कि-- सन् १८१३ की 44 ब्रिटिश भारत की आमदनी की बचत में से मंजूरी गवरमर जनरल को इस बात का अधिकार होगा कि हर साल एक लाख रुपए तक साहित्य की उन्नति और पुनरुजीवन के लिए और विद्वान भारतवासियों के प्रोत्साहन के लिए काम में लाए ।’ किन्तु यह समझना भूल होगी कि यह एक लाख रुपए सालाना की रकम वास्तव में भारतवासियों की शिक्षा के लिए मंजूर की गई थी। इस मंजूरी के साथ साथ जो पत्र डाइरेक्टरों ने ३ जून सन् १८१४ को गवरनर जनरल के नाम भेजा उसमें साफ लिखा है कि यह रक़म “राजनैतिक दृष्टि से भारत के साथ अपने सम्बन्ध को मजबूत रखने के लिए , ‘वनारखक और एक दो अन्य स्थानों के ‘पण्डितों को देने” के लिए'अपनी ओर विचारवान भारतवासि) के हृदय के भों का पता लगाने' के लिए, ‘प्राचीन संस्कृत साहित्य का अंगरेज़ी में अनुवाद कराने के लिए, ” संस्कृत पढ़ने की इच्छा रखने वाले अंगरेज़ों को सहायता देने के लिए,’ ‘उस समय की रही सही भारतीय शिक्षा संस्थाओं का पता लगाने के लिए’’ और ‘अपने साम्राज्य के स्थायित्व की दृष्टि से अंगरेजों और भारतीय नेताओं में अधिक मेल जोल पैदा करने के उद्देश से” मंजूर की गई है । इसी पत्र में यह भी लिखा है कि इस रकम की मदद से कोई सार्वजनिक कॉज न खोले जायें ।"#

  • 1iatry thr East India anjans, publishel 182vo. प्र. , 446, 447.