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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरखी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ १४०8 सहस्त्रों मुसलमान उनके चारों तरफ़ जमा हो गए औौर दिल्ली के

- हिन्दू बाशिन्हें स्थान स्थान पर ग्रपनी लुटियों में मेरठ से प्राए हुए सिपाहियों को प्रोतों और बताश का प्रारघत पिरतने लगे । दिल्ली के अंगरेज़ी बैंक पर कब्ज़ा कर लिया गया और अन्य अंगरेज़ी इमारतों को मिसार कर दिया गया। ‘‘दिल्ली के ग्रन्टर उस समय कोई गोगी पलटन नम न थी 1 किले के पास ग्रंगरेज का एक बहुत बड़ा मैगज़ीन दिल्ली का मैगीन था, जिसमें करीब नौ लात्र कारतूसदस हज़ार बन्दूक और बहुत सा गोला बारूद था क्रान्तिकारी सेना मैगज़ीम की प्रोर बढ़ी । उन्होंने दिल्ली सम्राट के नाम पर मैगजीन के अंगरेज़ अफ़सर नरट विलोधी को सन्देशा भेजा कि मैगज़ीन इमारे हवाले कर दें । विलोबी ने इनकार किया । मैगजीन के भीतर न अंगरेज़ और कुछ हिन्दोस्तानी थे । हिन्दोस्तानियों में जब सात किले के अपर सम्राट बहादुरशाह का इरा और सुनहरा झण्डा फहराते हुए देखा, वे अपने भाइयाँ से ग्रा मिल । यह देर। झण्डा ही सन १८५७५८ की क्रान्ति में समस्त भारत के ग्रन्दर क्रान्तिकारियों का युद्ध का झण्डा था । नौ अंगरेजों ने कुछ देर T वीरता के साथ शत्रु का मुकाबला किया । अन्त में मैगजीन को बचा सकना असम्भध देख उन्होंने उसमें आग लगा दी। लिम्बा है। कि मैगजीन के उड़ने पर एक हजार तोपों के साथ छूटने का सा शब्द हुआ, जिससे सार। दिल्ली के मकान हिल गए । न अंगरेज वीर उसी भाग के अन्दर समाप्त होगण, और उसी के साथ २५