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भारत में अंगरेज़ी राज

१३६६ भारत में अंगरेजी राज अवध और अंगरेजी फौज दोनों के अन्दर गहरे असन्तोष के बीज वो दिए। तीसरा मुख्य कारण लॉर्ड डलहौजी की व्यापक अपहरण नीति थी। एक दूसरे के बाद सतार, पजाब, झाँसी, डलहौजी की नागपुर, पनसिक्किमसम्वतपुर इत्यादि अपहरण नीति

  • ST रियासतों के अपहरण का ज़िक्र पिछले अध्यायों

में किया जा चुका है। इन भारतीय रियासतों को आम तौर पर जिस प्रकार कम्पनी के राज में मिलाया जाता था और उसका जो नतीजा होता था उसके विषय में मद्रास कौन्सिल का सदस्य जॉन सलीबन लिखता है जब किसी देशी रियासत का यन्त किया जाता है, तो वह के नरेश को हटा कर एक अंगरेज़ उसकी जगह नियुक्त कर दिया जाता है । उस अंगरेज़ को कमिश्नर कहा जाता है । तीन या चार दर्जन ख़ानदानी देशी दरबारियों और मन्त्रिों के स्थान पर कमिश्नर के तीन या चार सलाहकार नियुक्त हो जाते हैं । प्रत्येक देशी नरेश जिन सहस्त्रों सैनिकों का पालन करता है उनकी जगह हमारी सेना के चन्द सौ सिपाही नियुक्त कर दिए जाते हैं । वह पुराना छोटा सा दरबार लोप हो जाता है, वहीं का व्यापार ढीला पड़ जाता है, राजधानी वीरान हो जाती है, लोग निर्धान हो जाते थे हैं, अंगरे फलते फूलते हैं औौर स्प की तरह गईंग के किनारे से धन खींच कर उसे टेम्स के किनारे जाकर निचोड़ देते हैं ।'s • "Upon the extermination ot a native state, an Englishmen takes the place of the Govereign under the name ot Commissioner, three or four of his associates displace as many dozen of the native oficial aristocracy, while