१३४७ डलहौजी की -पिपासा इसी कारण डलहौजी के लिए इस प्रलोभन को जीत सकता असम्भव हो गया । किन्तु प्रधध के अपहरण डलहौजी का के लिए उतना भी बहाना में मिल सका जितना प्रलोभन नागपुर, झाँसी या स्मतारा के लिए। प्रबध . नया ने सद अंगरेजों की मदद की थी । सन्धि का ये सद ईमानदारी के साथ पालन करते रहे थे । बाजिदपुली शाह अपने पूर्वाधिकारी का मात्मज था, और बाजिदृअली शाद , मुनफ पुत्र लखनऊ के महल में मौजूद थे । फिर भी सन १८५६ में रकॉर्ड डलहौजी ने अपने इस निश्चय का एलान कर दिया कि प्रबध की सरतमत कम्पनी के राज में मिलता ली जायगी । इसका कारण यह बताया गया कि नबाब अपने शासन में उचित सुधार न फर रहा है या करने के अयोग्य है ! निस्सन्देद डलहौजी का यह कार्य सन् १८०१ और १८३७ फी सन्धियों का साफ उल्लादुन्न था। लॉर्ड डलहौजी की प्राशा से लखनऊ का रेज़िडेट ऊटरम महल में वाजिदग्रल शाह से मिलने गया1 अवध का प्रपहरण ऊरम ने नवाब के सामने एक पत्र पेश किया Y जिसमें लिखा था कि मैं खुशी से अपनी सरतनत कम्पनी को देने के लिए राजी हैं। रेजिडेण्ट ऊटरम ने उस पत्र पर दस्तत करने के लिए नवाब पर ज़ोर दिया 1 नवाब ने पत्र पढ़ कर ट्रस्तरम्रत करने से साफ़ इनकार कर दिया । रिशबतों चार धमकियों के रिए याजिदअली शाह के दस्तख्त कराने का प्रयत्न किया गया । तीन
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२६८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१३४७
डलहौज़ी की भू-पिपासा