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भारत में अंगरेज़ी राज

१३४६ भारत में अंगरेज़ी राज न होती थी। दोपहर तक सारी पलटनें कवायद करती थीं, और वाजिदअली शाह बराबर घोड़े पर सवार मैदान में मौजूद हैं रहता था। कम्पनी के प्रतिनिधियों को अवध के नवाब की ये हरकतें कहाँ । पसन्द आ सकती थीं ! अनेक तरह से ज़ोर वाजिदअली शाह डालकर नवाब को इस कार्य से रोका गया। ज़बर्दस्ती पर यहाँ तक कि बाजिदपुल शाह को विवश होकर कवायद के मैदान में जाना बन्द कर देना पड़ा। थोड़े ही दिनों बाद डलहौजी का समय आया । अबध की हरी भरी भूमि का प्रलोभन डलहौजी के लिए कोई वध का मनोरम साधारण प्रलोभन न था 1 अवध के विषय में प्रदेश - पार्लिमेण्ट की रिपोर्टों में दर्ज है इस सुन्दर भूमि में हर जगह जमीन की सतह से बीस फुट नीचे है और कहीं कहीं दस फुट नीचे विपुल जल भरा हुआ है । यह प्रदेश नरयन्त मनोरम और वैभवपूर्ण है । उसमें लम्बे और ऊँचे बॉसों के जाइल के जनरल हैं, मैदानों में शाम के वृक्षों को ठण्डी छाया है, खेत हरी भरी पैदावार से लहलहाते हैं । स्वयं प्रकृति ने बहाँ की भूमि को आस्यम्स सुन्दर बनाया है; उस पर इमली के वृक्षों का घना साया, सन्सरे के बाघों की सुगन्ध, इतर के दराक़तों का गहरा रल और फूलों की रज की सुन्दर और व्यापक खुशबू वह के दृश्य को और भी अधिक वैभव प्रदान करती रहती है !” मिस्सन्देह, अवध का धन वैभव उस समय कल्पनातीत था।