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भारत में अंगरेज़ी राज

का प्रारम्भ १३०२ भारत में अंगरेजी राज हिम्मत बढ़ गई । अंगरेजों के विरुद्ध असन्तोष समस्त पजाब में फैला हुआ था। सब लोग ख़ालसा राज की ने दूसरे सिख युद्ध रक्षा के लिए चतरसिंह और शेरसिंह के झण्डे के नीचे आ श्र कर जमा होने लगे । यही दूसरे सिख युद्ध का प्रारम्भ था । पहले सिख युद्ध में लालसिंह, तेजसिंह और गुलाबसिंह जैसे देशद्रोहियों की मदद से अंगरेजों की सफलता प्राप्त हुई थी। इस बार सिख सरदारों तक को अंगरेजों की दुरड़ी चालों का इतना काफ़ी रिचय मिल चुका था कि सिखों में अब इस प्रकार के देशद्रोही मिल सकना कठिन था। जिस मुसलमान लेखक का हम ऊपर ज़िक्र कर चुके हैं वह सर चार्ल्स नेपियर के नाम अपने पत्र में लिखता है -- ‘सन् १८४ ६ की अपेक्षा इस समय पक्षाघ को काबू में करना कई गुना ज़्यादा कठिन है ” “ मैं उस समय x x सिख सरदारों ने हमारे वादों पर विश्वास कर लिया था, बल्कि हमसे रिशवतें तक ले ली थीं, किन्तु अब वे रिशवतें स्वीकार न करेंगे । जिस तरह का उनके साथ व्यवहार किया गया है उससे उनके चित्तों में ज़बरदस्त घृणा उत्पन्न हो गई है । यदि कोई असाधारण बात, कि जिसकी इस समय मुझे आशा नहीं है, सिखों को रोकने बाली न हुईतो एक एक सिख हमारे विरुद्ध निकल पड़ेगा ।

  • " It is not many more times more dificult to subdue Punjab than

1846 . . . then . . the Sirders accepted promises, nay took bribes, toobut now they will not take bribes, and animated with great haired for the way they were treated. the stkhs wil turn out to a man, unless