पहला सिख युद्ध १९८१ भगवरनर जनरल को अंगरेजी सेना बिलकुल थोड़ी मामलु हुई । , गवनर जनरल सिखो बीरता चुका था। इसलिए उसे की देख यह भी विश्वास न था कि देश भर में समस्त सिख कौम नासानी से अंगरेजों की अधोनता स्वीकार कर लेगी ।उसने लाहौर दरबार के साथ सन्धि कर लेना ही उचित समझा। मार्च सन् १८४६ में लाहौर ऊरवार के साथ पहली सन्धि की गई। पचब का कुछ इलाक़ा लाहौर दरबार और चालक दलोप- सिंह से छीन कर अंगरेजी राज में मिला लिया गया, और शेप के ऊपर देशद्रोही लातसिंह को वजीर की हैसियत से शासक नियुक्त कर दिया गया। किन्तु शीघ्र ही इस सन्धि को तोड़ कर एक दूसरी सन्धि की ग्राबण्यकता अनुभव हुई । मालूम होता है कि देशद्रोहियों को लालसिंह को कुछ और अधिक इनाम की प्राशा थी। गुलाबसिंह को उसके देशद्रोह के पारि तोषिक रूप काश्मीर का विशाल राजशेख इमामुद्दीन से छीन कर, पक करोड़ रुपया लेकर दे दिया गया। लालसिंह का असन्तोष और भी अधिक बढ़ा । कहा जाता है कि उसने गुलाय- ( सिंह के काश्मीर पर कब्ज़ा करने में बाधाएं डालीं। अन्त में लाहौर में एक दूसरी सन्धि की गई, जिसे मैरीवाल की सन्धि हो कहा जाता है । यह सन्धि १६ दिसम्बर सन् १८४६ को की गई। इस सधि के अनुसार रामी झिन्दाँ को पन्द्रह हजार पाउण्ड अर्थात् डेढ़ लाख रुपये सालाना की पेनशन देकर रा प्रबन्ध से पुरस्कार
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पहला सिख युद्ध