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सिन्ध पर अंगरेज़ों का क़ब्जा़

सिन्ध पर अंगरेज़ का कब्ज़ा ११28 समय कि उनका पालन करने फायदा हो ।भेड़िए और तक में ’ ” मेमने के किस्से में मेमने को खा जाने के लिए मेड़िए ने जो बहाने गढ़े चे उन यहा से अधिक चतुराई के न थे जिनका अंगरे सरकार ने अमीरों के साथ अपने समस्त व्यवहार में उपयोग किया ।’’ जनवरी सन् १८३8 में हैदराबाद के अमीर नूरमोहम्मद खाँ और कप्तान ईस्टबिक के बीच इस सम्बन्ध में जो बात चीत हुई उसका वर्णन पिछले अध्याय में किया जा चुका है । सिन्ध का राज उस समय दो मुख्य भागो में बँटा हुआ था । ऊपर के भाग की राजधानी ढेरपुर थी । नीचे का हिस्सा हैदराबाद दवार के शासन में था। दोनों में हैदराबाद के अमीर मुख्य सम जाते थे। फिर भी हैदराबाद के अमीरों और खैरपुर के अमीरों में प्रेम और समानता का व्यवहार था। दोनों एक ही खुल से थे । कप्तान ईस्टबिक की बात चीत हैदराबाद के तीनों अमीरों के साथ हुई थी।इसके बाद खैरपुर के अमीर मीर रुस्तम खाँ की बारी आई। मीर रुस्तम ख़ाँ एक अस्सी वर्ष का बूढ़ा और अत्यन्त शान्ति- प्रिय वलूची मरेश था । हैदराबाद के अमीर, मीर रुस्तम अंखाँ । जिसका यह चचा लगता था, उसका बड़ा

  • ' And this is British justice ! . . . . The British were the first to

perpetrate a breach of good faith. They taught the Amits of Sindh that treaties were to be regarded, only so long as it was convenient to regard them. . . . The Wold in the fable did not show greater cleverness in the discovery of a pretext for devouring the lamb than the British Govemment has shown in all its dealings with the Amirs."-Kye, Th: Calautic Retical, vol. 1. pp, 220-228 ७६