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भारत में अंगरेज़ी राज

११ भारत में अंगरेज़ी राज सिन्ध अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह को खिराज दिया करता था, इस लिए युद्ध के खर्च के लिए २१ लाख रुपए नकद और आइन्दा । हमेशा के लिए ३ लाख रुपए प्रति वर्ष तुम अंगरेज़ कम्पनी को दिया करोइत्यादि। इससे पूर्व सन् १८०8 की सन्धि के समय गवरनर जनरल स्वीकार कर चुका था कि अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह को खिन्ध के अमीरों से ख़िरा लेने का कोई हक नहीं । इसके अतिरिक्त सिन्ध के अमीरों ने इस समय अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह के लिखे हुए दो प्रतिज्ञापत्र पेश किएजिन पर अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह के दस्तख़त और मोहर मौजूद थीं और जिनमें लिखा था कि भविष्य में सिन्ध के अमीरों से कभी किसी तरह का कोई खिराज न लिया जायगा ।” किन्तु इनमें से किसी बात का कोई ख्याल नहीं किया गया । सिन्ध के अमीरों से कहा गया कि अंगरेजों को अंगरेजों की इस समय जरूरत है और दोस्ती केवल इसी ईमानदारी शर्त पर कायम रह सकती है कि तुम अंगरेजों की मदद करो इस अनुचित व्यवहार पर इतिहास लेखक सर जॉन के लिखता है “औौर इसी का नाम अंगरेजों की ईमानदारी है ” मैं सबसे पहले अंगरेज ने अपने वादों को तोड़ा । उन्होंने सिव के अमीरों को सिखा दिया कि सन्धिों का केवल उस समय तक पालन करना चाहिए जिस • Blue book, 2. 31.