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भारत-भारती




है एक चिथड़ा ही कमर में और खप्पर हाथ में,
नङ्ग तथा रोते हुए बालक विकल हैं साथ में ॥१२॥

आवास या विश्राम उनका एक तरुतले मात्र है,
बहु कष्ट सहने से सदा काला तथा कृश गात्र है !
६मन्त उनकेा है कैंपाद, तप तुपाता है तथा-
है झेलनी पड़ती उन्हें सिर पर विषम वेष-व्यथा !॥१३॥

यह पेट उनका पीठ से मिल कर हु क्या एक है ?
माने निकलने के परस्पर हड्ड्यिों में टेक है !
निकले हुए हैं दाँत बाहर, नेत्र भीतर हैं फँसे;
किन शुष्क आत में न जाने प्राण उनके हैं फँसे ! ।।१४।।

 अचिराम आँखों से बरसता आँसुओं का मेह है,
है लदपटातो चलि उनको, छटपटाती देह है !
गिर कर कभी उठते यहाँ, उठ कर कमी गिरते वहाँ;
घायल हुए-से घूमते हैं वे अनाथ जहाँ तहाँ ॥१५॥
हैं एक मुट्ठी अन्न को वे द्वार द्वार पुकारते,
कहते हुए कातर बचन सब ओर हाथ पसारते“दाता !
तुम्हारी जय रहे, हमको दया कर दीजियो, भाता !
मरे, हा! हा! हमारी शीत्र ही सुध लीजियो”॥१६॥

कृमि, कीट, खग, मृग आदि भी भूखे नहीं सोते कभी,
पर वे भिखारी स्वप्न में भी भूख से रोते समी !
सुप्त हैं या मृत कि मूञ्छित, कुछ समझ पढ़ता नहीं;
मूग्छ कि मृत्यु अवश्य है, यह नींद की जड़ता नहीं।।१७।।