पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/८८

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भारत-भारती श्रीसुर, तुलसी, देव, केशव कवि विहारी-सम हुए; जिनके अतुल प्रन्थाकों से भवि-रत्नोद्गम हुए॥ २३४ ॥ औरङ्गजेब यदि पूजे की नीति के औरङ्गजेब न भूलतहोती यवन राजन्य पर विधि की न थे प्रतिकूलतः । यो-वध मिटाने के कहाँ वह पूर्वजों की घोषणासेचे, कहाँ यह हिन्दुओं के धर्म-धन की शोषमा १ ॥२३॥ अन्याय ऐसे, पुरुष होकर, हाय ! हम सहते रहे, करके न छ 'उद्योग विधि की बात हो कहते रहे । हम चाहते ते एक होकर क्या न कर सकते मला ? पर ऐक्य की ते नाभ लेते हो यहाँ घुटता पाला ! ! ।। २३६ ॥ १---(क) प्रसिद्ध है कि नरहरि कवि के निम्नलिखित पद्य को सुन कर मुगल सम्राट अकबर ने गोकुशी बिडकुल ही बन्द कर दी थी--- तृण जे दन्ततर घर तिनई भरत न सबल कोइ, हम नित प्रति तृण चरहि हैन अरहि दम होइ । हिन्दुह मधुर न देह कटुक तुरकहि न पिअहि, त्य विशुद्ध अति सवहि बच्छ महिथम्भन जावहि । सुन शाह अकब्बर ! अरज यह, कहत गऊ जोरे कर, सौ कौन चूक मोह सारियत, मुए चाम सेवहुँ चरन । ( ख ) अकबर ने जैनाचार्य हरिविजय सुरि और जयचन्दसूरि के | अनुरोध से साल में कुछ नियत ोिं के लिये जीव हंसा मात्र बन्द कर देने के प्रमान जारी कर दिये थे । इस बात का उल्लेख प्रसिद्ध इतिहास एक वरदानी ने भी किया है और विजय-प्रशस्ति जसिक महाकाव्य में भी यह बात लिखी हुई है।