पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/७७

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मरिसके प्राचीन राजवाइसके पिता सिंहनके सिक्कोंपर श०-०३०४ र इसके बाद स्वामी रुद्रसिंह तृतीय धिकॉपर संपर विचार छाने इसका समय श०सं० ३६४ र ३१६ के बीच प्रतीत होता है । स्वामी सत्याह । इसका पता केवले इसके धुर स्वामी सदसिंह सीप सिकसे लगता है ! अतः यह कहना भी कठिन है कि इसका पूर्वोक्त शापा क्या चुम्वन्ध थः । शायद यह स्वामी सिहसेनका भाई हो । उस समय भी श० स० ३०और ३१० के बीच हैं किसी समय हो । स्वामी रुद्सिंह तृतीय । [मन्स० ३१४१(१०स०३८८ =» ०४४५.?)] | यह भी राय एका पुन और इस वंशका अन्तिम अधिकारी या । इस चॉदी के सिकेकॉपर एक तरफ 4 राज्ञो महापस स्वामी सत्संहपुनस रात महापंपस स्वामी रुद्रसिंहरा" और दूसरी तरफ श० स०३१५ लिसा होता हैं । समाप्ति । साफ तौरा शताब्दीके उत्तराधसे ही गुप्त राजाभका प्रभाव बढ़ र था और राम्रो के मार से पररवे राजा उनकी ना रुकार करते जाते थे 1 इलाहाबादके समुद्रगुप्त के लैस पता चढ़ता है । शक लोग भी उस ( समुद } व सेवा में रहते थे। ई० स० ३८०६ रामुद्रगुप्त पुत्र चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा । इसने ई० से ३८८ के आस पास रहें सह

  • राज्यको भी नझर अपने राज्यमें भेजा इलैया और इस हर भारतमें शक ज्यही समाप्त हो गई।

(१) यह भ६ साफ़ नई पहा जाता है। ३६