पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/७५

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आरतके प्राचीन राजधा ८ सं० २० से ३८६ तक १३ वर्षके सिंकी न मिलने से अनुमान होता है कि उस समय इनके राज्यमें अषय ही कोई चडी पहुबह मचा होगी, जिससे सिक्के द्वमानेका कार्य बन्द हो गया था। यही अवस्था पप यशदामा द्वितीय और महाक्षनरी स्वामी रूद्दीमा द्वितीय राज्यके बीच भी हुई होगी ।। | श०स० २८० से २९४ तकके कुछ सीमेॐ चकोई सिक्के मिले हैं । ये क्षत्रप सिकॉमें मिल्ने हुए हैं। हैं । इनमें कुँवल विशेषता इतनी ही है कि इ तरफ चैत्य नाचे ही सपत लिखा होता है। परन्तु निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि ये पिके स्वाम रुद्रसेन तृतीयके ही हैं या इसके राज्य पर हमला करने वाले £िसी अन्य राजाके हैं । स्वामी सिंहसेन । [ १ सय ३५४+३+ +' । ३० स० ३८३ +1८17 * = वि सुरु |४३९-४११) । यह स्बा। रुद्रसेन तृतीयका मानना था 1 इसके महजप उपा-ि चाले यदीके सिक्के मिळे हैं । इन पर एक तरफ “रा महाक्षरपस स्था रोगस राज महापस स्वस्निपरुप स्वामी सिन या *"महाराज क्षत्रप वा कुद्न स्ववियस रास महापस यामी सिंहसेनस्य ? और इस तरह श-स६ ३०४ सिा रहता है। परन्तु एक सिक्के प ३९६ मी पी जा सका है। इसके सिक्कों परके अक्षर चहुत ही जरव हैं। इससे इसमें नीम के पटने में प्रेम हो जाता है, क्या इसमें लिसे 'ह' और ' न ! मैं (१) J ] f] [ A. E, Je , 1259 ), 23 Typ catalogu not the Addora and Kalatrap dyeasts, (१) यइ भइ साप नही पूरा वादा है। (v) Iluon catalogue of 11. COLD1 ot Arder and kitara draattyi OXLYI