पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/७३

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भारतके प्राचीन राजवंश महाजप उपाधिकाले उक्त समय के सिक्कों ने मिलनेसै मह भी अनुमान होता है कि शायद उस समय इस राज्य पर किसी विदेशी शक्तिक चाई हुई है और उसका अधिकार हो गया है। परन्तु जब तक जन्य किसी धेशके इतिहाससे इस बातकी पुष्टि न हो तब तक यह निपथ सन्दिग्ध न रहेगा । रुद्रसिंह द्वितीय । 1-सु-२३५–१३»'(ईस ३०५-३१=वि० सं० १६ २-३६+ । यह स्वामी जयघामाका पुत्र था। इसमें सबसे पहले श०सं० २ २७ के क्षत्रप उपाधेिशले चौदीके सिंझे मिले हैं और इसके पूर्व श०सं० २६ तक के क्षत्रप विश्वसेन सिंझे मिलते हैं । अतः पूरी तो नहीं कह सकते कि यह रुद्रसिंह द्वितीय श०सं० २२६ में ही शत्रप होण्या था या श०सं० २२ में हुआ था। | j० २३९ के इस उत्तराधिकारी क्षत्रप यौदामा सिके | मिले हैं। अतः यह स्पष्ट है कि इरफा अधिकार इ०-६२२६ या २२७ से आरम्भ होकर इ०- १३३ ६ समाप्तिके पूर्व किसी समय तक रहा था। प्त निकों पर एक तरफ “वानी विदामपुर राज नपरी रुद्रसिंहसः' और दू तरफ मस्तके पीछे संवत् लिपा निलता है। इसके पुत्रका नाम यशोदामा या। यशोदामा द्वितीय ।। [ ६०- २३१-२५४१६••३१७-११= १० १७४-८५ }] यह राह द्वितीया पुन या । इसॐ श० सं० २३९ से ११४ सक्के गाँदी के 8 ॐ हैं। इन पर "n पस रामपुनम - | ( 1 ) इसके सिर में केस ३११ कई : सत् (पए पो गर्दै ६। अग प्त : साफ नहीं हैं।